Tuesday, October 08, 2019

HR in IT: Threats before Opportunities

...Reproducing the gist of one of my informal talks with a bunch of supremely talented and adequately inspired college and university students from the Hindi belt and the North-east, organized by local and NGO bodies as part of a freewheeling initiative to discuss mainstream issues with the populace that forms India's mainstream.

Hence the choice of Hindi as the language of interaction. Enthused by the spirited response of the audience across different North and North-Eastern states, I approached a few Hindi publications for carrying the piece; not surprisingly, most editors implied this was 'not much of an issue' and some seemed absolutely sure that "IT people are the best we have. They know everything".

My faith in the quality (as also quantity) of Indian Journalism was always shaky with good reason, but I was unaware of the sad fact that the Hindi belt dailies are as lethargic and as insular, if not as conceited, as their counterparts in Mumbai and Pune.        

Anyway, here's the gist of the thought piece for public circulation:


एक आईटी की रेड ऐसी भी 
सुधीर रायकर

सूचना प्रौद्योगिकी यानी की इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी पर हमारी आस्था, और हमारा अभिमान, कई परी कथाओं की चादर ओढ़े खड़ा है। सॉफ्टवेयर की उपयोगिता पर कोई सवाल खड़ा नहीं हो सकता, और उसका महत्व हम सब को भलीभाँति ज्ञात है। लेकिन भारतीय सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट नाम की फैक्ट्री का एक पहलू ऐसा भी है जिसको नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। 

कहने को तो कई सारी आईटी कम्पनियाँ, विशेषकर स्टार्टअप कम्पनियाँ,  'फ्लैट' होने का दावा करती है, हर मौके इस चौके का बखान करती है की 'हमारे यहाँ पद के नाम पर, पोज़िशन के नाम पर कोई भेद भाव नहीं होता, कोई ऊंच नीच नहीं होती।'  लेकिन उनके शीशे के कार्यालयों में आपको कई तानाशाह नज़र आएंगे जो कनिष्ठ सहयोगियों के शोषण को अपना हक़ भी मानते है, और शौक भी। कई सूट बूट वाले और जर्सी शॉर्ट्स वाले प्रोफ़ेशनल्स ऐसे भी है जो केवल अपने वरिष्ठों के अहंकार को पंखे की हवा दिलाते-दिलाते दुनिया घूम आते है, और ऑन साइट के विदेशी ऑफिस में अपने सेल फ़ोन पर, टैबलेटों पर और लैपटॉप पर कई सारे एक्सेल शीट और वर्ड डॉक्यूमेंट खोलकर काम करने का अच्छा खासा अभिनय कर लेते है।  वहा ऑफशोर ऑफिस में  सैकड़ो 'मजदूर' रात दिन कोड करते रहते है ताकि इन ग्लोब ट्रॉटर महानुभावो को जेट लैग से बचने के नुस्को पर ध्यान देने के लिए बहुमूल्य समय प्राप्त हो सके। काम से ज्यादा नाम की धुन हर किसी के सर पर सवार रहती है। भले ही इन्हे मशीन लर्निंग और आर्टिफीशीयल इंटेलिजेन्स के मौलिक भेद का ज्ञान हो न हो, तोते की भांति ये शब्द रटते हुए ये खुद के 'आर्टिफीशीयल इंटेलिजेन्स' की बेहूदा नुमाईश करते है।        

दुःख की बात यह है की इस 'पोषक' वातावरण में अच्छे से अच्छा सॉफ्टवेयर प्रोग्रामर भी बहुत जल्द सॉफ्टवेयर पॉलिटिशियन बनने के सपने देखने लगता है।  कोडर खुद को डेवलपर बताता है, सॉफ्टवेयर डेवलपर अपने को सॉफ्टवेयर आर्किटेक्ट कहलवाना पसंद करता है और सॉफ्टवेयर आर्किटेक्ट के तो क्या कहने - उसे पूरी तरह यकीं हो जाता है की वह किसी भी मामले में खुदा से कम नहीं।  ये समझना की टेक्नोलॉजी अपने आप में लोकतान्त्रिक है एक ऐसा भ्रम है जिसका आईटी वाले बड़े चाव से प्रचार करते है। 

आने वाले समय में नवोन्मेष (innovation) हर किसी कंपनी के विस्तार का, विकास का आधार भी होगा, मापदंड भी। ऐसे में 'reskilling' का मतलब केवल नयी लैंग्वेज, प्लेटफार्म, फ्रेमवर्क सीखना ही नहीं है, केवल बिग डाटा अनलिटिक्स सीखना ही नहीं है, केवल python या hadoop सीखना ही नहीं है, बल्कि अपनी मानसिकता को बदलना भी है।  विनम्रता, निष्कपटता, अटलता, नैतिकता ये गुण मस्तिष्क में बिठाना भी उतना ही जरूरी है, आपकी क्षमता और चपलता (एबिलिटी एंड एजीलिटी) तथा प्रतिभा और स्वभाव (टैलेंट एंड टेम्परामेंट) का विकास और विस्तार भी उतना ही आवश्यक है।            

आज समय आ गया है की हम अपने आईटी के वीरो को ये सिखाये की टेक्नोलॉजी का महज नाम या संदर्भ आपके इंटेलिजेन्स का सबूत नहीं बन सकता। उन्हें ये बताना जरुरी हो गया है की आप टेक्नोलॉजी को एनब्लेर (enabler) के तौर पर किस तरह मानवता के हित में उपयोग में लाते है इस जीवनप्रद निकष पर आपका गुणगौरव निर्भर है।  वरना आईटी के अहंकार की ये खतरनाक रेड हमें बहुत महँगी पड़ेगी।